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Sunday, January 14, 2018

जूते पॉलिश करने वाले ने खडी की करोडों की कम्पनी।

आज हम आपके साथ एक एेसे शख्स के बारे में बताने जा रहे हैं जिसने engineering की पढ़ाई करने के बाद जूते पॉलिश का काम शुरू किया था लेकिन अपनी मेहनत से वह एक दिन सफल आदमी बन जाता है अगर आप जूता पॉलिश करने को छोटा या निम्न स्तर का काम समझते हैं तो अपनी इस सोच को बदल दें. क्योंकि कोई भी काम छोटा या बड़ा नहीं होता. आइडिया बेहतरीन हो तो किसी भी काम के जरिये कामयाबी हासिल करना असंभ नहीं है.

एक ऐसी ही मिसाल पेश की है संदीप गजकस ने. संदीप को सफाई का फितूर रहता था. घर हो या उनके अपने जूते, कुछ भी गंदा नहीं रहना चाहिए. हालांकि शादी के बाद संदीप के इस‍ फितूर में जरा सी कमी जरूर आई है, पर सफाई रखने का उनका जुनून अब भी कम नहीं हुआ है.

उनके सफाई पसंद आदत की वजह से ही आज वो करोड़प‍ति हैं. संदीप ने एक ऐसा बिजनेस शुरू किया, जिसे लोग निम्न स्तर का मानते थे. संदीप ने जूते की लॉन्ड्र‍िंग शुरू कर यह साबित कर दिया कि कोई काम छोटा या बड़ा नहीं होता.

इंजीनियर हैं संदीप

संदीप गजकस नैशनल इंस्‍टीट्यूट ऑफ फायरिंग इंजीनियरिंग से इंजीनियरिंग कर चुके थे. वह जॉब के लिए गल्‍फ जाने की तैयारी कर रहे थे, लेकिन तभी 2001 में अमेरिका पर 9/11 का अटैक हुआ और उन्‍होंने विदेश जाने का प्‍लान ड्रॉप कर दिया.

विदेश में नौकरी का प्‍लान ड्रॉप करने के बाद संदीप ने शू पॉलिश का बिजनैस शुरू करने की ठानी. करीब 12,000 रुपये खर्च कर उन्‍होंने बिजनैस शुरू करने की तैयारी शुरू किया. मां-बाप और दोस्‍तों को अपना यूनिक आइडिया समझाने के बाद कुछ महीनों तक संदीप ने खुद जूता पॉलिश किया. अपने बाथरूम को वर्कशॉप बनाकर उन्‍होंने शू पॉलिशिंग को लेकर रिसर्च करना शुरू किया. इसके लिए उन्‍होंने अपने दोस्‍तों और रिश्‍तेदारों के जूते पॉलिश करने का काम किया.

संदीप ने एक इंटरव्‍यू में बताया था कि वह जूता पॉलिश के बिजनैस को सिर्फ पॉलिश से निकालकर रिपेयरिंग तक ले जाना चाहते थे. ऐसे में उन्‍होंने काफी लंबे समय तक रिसर्च किया. इस दौरान उन्‍होंने लाखों रुपये खर्च किए और फेल होते रहे. संदीप ने बताया कि मैं पुराने जूतों को एकदम नया बनाने और उन्‍हें रिपेयर करने के इनो‍वेटिव तरीके ढूंढ़ रहा था. मैंने रिसर्च पर सबसे ज्‍यादा समय बिताया और उस रिसर्च के बदौलत ही मैंने फाइन‍ली 2003 में अपना और देश की पहली 'द शू लॉन्‍ड्री' कंपनी शुरू की. मैंने सफल होने के लिए पहले फेल होना सीखा और उन तरीकों को ढूंढ़ा, जो मुझे नहीं करने चाहिए. मुंबई के अंधेरी इलाके में शुरू हुई गजकस की ये कंपनी आज देश के कई शहरों में पहुंच चुकी है.

संदीप आज इसकी फ्रेंचाइजी देते हैं और कंपनी का टर्नओवर करोड़ों में पहुंच चुका है.अगर आप इस तरह की real life story पढना चाहते हैं तो हमारी
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Monday, January 8, 2018

बिल गेट्स कैसे बने दुनिया के सबसे अमीर आदमी। बिल गेट्स की सफलता की कहानी, Bill Gates biography in hindi

आज हम फिर एक बार आपके समक्ष एक ऐसे आदमी की जीवनी  लेकर प्रस्तुत हैं जिन्होंने अपने जीवन में अपनी कड़ी मेहनत से न केवल सफलता के शिखर को छुआ,  इतनी प्रसिद्धि भी प्राप्त की कि वह कई लोगों के प्रेरणा स्रोत बन गए – इनका नाम है “बिल गेट्स”


बिल गेट्स को किसी परिचय कि आवश्यकता नहीं है, वह पूरी दुनिया में अपने कार्यों से जाने जाते हैं | हम सभी यह भली भांति जानते हैं कि दुनिया की सर्वश्रेष्ठ Software Company “Microsoft” की नींव भी बिल गेट्स के द्वारा ही रखी गयी है।
बिल गेट्स का वास्तविक नाम विलियम हेनरी गेट्स  है | इनका जन्म 28 October, 1955 को वाशिंगटन के सिएटल में हुआ |

इनके परिवार में इनके अतिरिक्त चार और सदस्य थे – इनके पिता विलियम एच गेट्स जो कि एक मशहूर वकील थे, इनकी माता मैरी मैक्‍सवेल गेट्स जो प्रथम इंटरस्टेट बैंक सिस्टम और यूनाइटेड वे के निदेशक मंडल कि सदस्य थी तथा इनकी दो बहनें जिनका नाम क्रिस्टी और लिब्बी हैं |

बिल गेट्स ने अपने बचपन का भी भरपूर आनंद लिया तथा पढ़ाई के साथ वह खेल कूद में भी सक्रिय रूप से भाग लेते रहे |
उनके माता – पिता उनके लिए क़ानून में करियर बनाने का स्वप्न लेकर बैठे थे परन्तु उन्हें बचपन से ही कंप्यूटर विज्ञान तथा उसकी प्रोग्रामिंग भाषाओं में रूचि थी | उनकी प्रारंभिक शिक्षा लेकसाइड स्कूल में हुई | जब वह आठवीं कक्षा के छात्र थे तब उनके विद्यालय ने  ऐएसआर – 33 दूरटंकण टर्मिनल तथा जनरल इलेक्ट्रिक (जी.ई.) कंप्यूटर पर एक कंप्यूटर प्रोग्राम खरीदा जिसमें गेट्स ने रूचि दिखाई | मात्र 13 वर्ष की आयु में उन्होंने अपना पहला कंप्यूटर प्रोग्राम लिखा जिसका नाम  (tic-tac-toe) तथा इसका प्रयोग कंप्यूटर से खेल खेलने हेतु किया जाता था | बिल गेट्स इस मशीन से बहुत अधिक प्रभावित थे तथा जानने को उत्सुक थे कि यह Software Codes किस प्रकार कार्य करते हैं |
इसी समय के दौरान उन्होंने अपने मित्रों के साथ मिलकर सीसीसी के Software में हो रही कमियों को दूर कर लोगों को प्रभावित किया तथा उसके पश्चात वह सीसीसी के कार्यालय में निरंतर जाकर विभिन्न प्रोग्रामों के लिए सोर्स कोड का अध्ययन करते रहे और यह सिलसिला 1970 तक चलता रहा |
मात्र 17 वर्ष कि उम्र में उन्होंने अपने मित्र एलन के साथ मिलकर ट्राफ़- ओ- डाटा नामक एक उपक्रम बनाया (Intel 8008 Processor) पर आधारित  यातायात काउनटर बनाने के लिए प्रयोग में लाया गया |

1973 में वह लेकसाइड स्कूल से पास हुए तथा उसके पश्चात बहु- प्रचलित Harvard College में उनका दाखिला हुआ | परन्तु उन्होंने 1975 में ही बिना स्नातक किए वहाँ से विदा ले ली जिसका कारण था उस समय उनके जीवन में दिशा का अभाव |

उसके पश्चात उन्होंने Intel 8080 चिप बनाया तथा यह उस समय का व्यक्तिगत कंप्यूटर के अन्दर चलने वाला सबसे वहनयोग्य चिप था, जिसके पश्चात बिल गेट्स को यह एहसास हुआ कि समय द्वारा दिया गया यह सबसे उत्तम अवसर है जब उन्हें अपनी स्वयं कि Company का आरम्भ करना चाहिए |
MITS (Micro Instrumentation and Telemetry Systems) जिन्होंने एक माइक्रो कंप्यूटर का निर्माण किया था, उन्होंने गेट्स को एक प्रदर्शनी में उपस्थित होने कि सहमती दी तथा गेट्स ने उनके लिए अलटेयर एमुलेटर  निर्मित किया जो Mini Computer और बाद में इंटरप्रेटर में सक्रिय रूप से कार्य करने लगा |

इसके बाद बिल गेट्स व् उनके साथी को MITS के अल्बुकर्क स्थित कार्यालय में काम करने कि अनुमति दी गयी | उन्होंने अपनी जोड़ी का नाम Micro-Softरखा तथा अपने पहले कार्यालय कि स्थापना अल्बुकर्क में ही की | 26 नवम्बर, 1976 को उन्होंने Microsoft का नाम एक व्यापारिक Company के तौर पर पंजीकृत किया |

Microsoft Basic कंप्यूटर के चाहने वालों में सबसे अधिक लोकप्रिय हो गया था | 1976 में ही Microsoft MITS से पूर्णत: स्वतंत्र हो गया तथा Gates और Allen ने मिलकर कंप्यूटर में प्रोग्रामिंग भाषा Software का कार्य जारी रखा |

इनसे बाद Microsoft ने Albuquerque में अपना कार्यालय बंद कर Bellevue, Washington में अपना नया कार्यालय खोला | Microsoft ने उन्नति की ओर बढ़ते हुए प्रारंभिक वर्षों में बहुत मेहनत व् लगन से कार्य किया | गेट्स भी व्यावसायिक विवरण पर भी ध्यान देते थे, कोड लिखने का कार्य भी करते थे तथा अन्य कर्मचारियों द्वारा लिखे गए व् जारी किये गए कोड कि प्रत्येक पंक्ति कि समीक्षा भी वह स्वयं ही करते थे |

इसके बाद जानी मानी Company IBM ने Microsoft के साथ काम करने में रूचि दिखाई, उन्होंने Microsoft से अपने पर्सनल कंप्यूटर के लिए बेसिक इंटरप्रेटर बनाने का अनुरोध किया |

कई कठिनाइयों से निकलने के बाद गेट्स ने Seattle Computer Products के साथ एक समझौता किया जिसके बाद एकीकृत लाइसेंसिंग एजेंट और बाद में 86-DOS के वह पूर्ण आधिकारिक बन गए और बाद में उन्होंने इसे आईबीएम को $80,000 के शुल्क पर  PC-DOS के नाम से उपलब्ध कराया | इसके पश्चात Microsoft का उद्योग जगत में बहुत नाम हुआ |

1981 में Microsoft को पुनर्गठित कर बिल गेट्स को इसका चेयरमैन व् निदेशक मंडल का अध्यक्ष बनाया गया | जिसके बाद Microsoft ने अपना Microsoft Windows का पहला संस्करण पेश किया | 1975 से लेकर 2006 तक उन्होंने Microsoft के पद पर बहुत ही अदभुत कार्य किया, उन्होंने इस दौरान Microsoft company के हित में कई महत्वपूर्ण निर्णय लिए |

1994 में बिल गेट्स का विवाह फ्रांस में रहने वाली Melinda से हुआ तथा 1996 में इन्होंने जेनिफर कैथेराइन गेट्स को जन्म दिया | इसके बाद मेलिंडा तथा बिल गेट्स के दो और बच्चे हुए जिनके नाम रोरी जॉन गेट्स तथा फोएबे अदेले गेट्स हैं |

वर्तमान में बिल गेट्स अपने परिवार के साथ वाशिंगटन स्थित मेडिना में उपस्थित अपने सुन्दर घर में रहते हैं, जिसकी कीमत 1250 लाख डॉलर है |
वर्ष 2000 में उन्होंने अपनी पत्नी के साथ मिलकर बिल एंड मेलिंडा गेट्स फाउंडेशन (Bill and Melinda Gates Foundation) की नींव रखी जो कि पारदर्शिता से संचालित होने वाला विश्व का सबसे बड़ा Charitable Foundation था |

उनका यह Foundation ऐसी समस्याओं के लिए कोष दान में देता था जो सरकार द्वारा नज़रअंदाज़ कर दी जाती थीं जैसे कि कृषि, कम प्रतिनिधित्व वाले अल्पसंख्यक समुदायों के लिये कॉलेज छात्रवृत्तियां, एड्स जैसी बीमारियों के निवारण हेतु, इत्यादि |
सन 2000 में इस Foundation ने Cambridge University को 210 मिलियन डॉलर गेट्स कैम्ब्रिज छात्रवृत्तियों हेतु दान किये | वर्ष 2000 तक Bill Gates ने 29 बिलियन डॉलर केवल परोपकारी कार्यों हेतु दान में दे दिए |

लोगों की उनसे बढती हुई उम्मीदों को देखते हुए वर्ष 2006 में उन्होंने यह घोषणा की कि वह अब Microsoft में अंशकालिक रूप से कार्य करेंगे और बिल एंड मेलिंडा गेट्स फाउंडेशन में पूर्णकालिक रूप से कार्य करेंगे |

वर्ष 2008 में गेट्स ने Microsoft के दैनिक परिचालन प्रबंधन कार्य से पूर्णतया विदा ले ली परन्तु अध्यक्ष और सलाहकार के रूप में वह Microsoft में विद्यमान रहे |

 आइये अब हम आपको बिल गेट्स की कुछ महत्वपूर्ण बातों से अवगत कराते हैं ;

मात्र 13 वर्ष कि आयु में अपना पहला कंप्यूटर प्रोग्राम टिक-टैक-टो लिखा |विद्यालय में शिक्षा ग्रहण करते हुए ही उन्होंने कंप्यूटर प्रोग्राम बनाकर 4,200 डॉलर कमा लिए |उन्होंने अपने अध्यापक से कहा था कि वह 30 वर्ष की आयु तक करोड़पति बन जाएंगे और मात्र 31 वर्ष की आयु में उन्होंने अरबपति बनकर दिखाया | दुनिया के सबसे अमीर लोगों की सूची में बिल गेट्स का नाम लगातार 11 वर्षों तक 1 नंबर पर आता रहा |उन्होंने दो किताबें भी लिखीं – The Road Ahead और Business @ The Speed of Thought |पूरे जगत की सबसे बड़ी Software Company की नींव बिल गेट्स द्वारा ही रखी गयी |आप इस तरह की    real  life  story   पढना  चाहाते  है  तो  हमारी website - kpmagazine.blogspot.com पर visit करें। अगर आपको यह biography पसंद आई हो तो Facebook पर शेयर जरूर करें। 

Saturday, January 6, 2018

8th Fail ये लड़का कैसे बना 2,000 करोड़ की company का मालिक, success story

आठवीं कक्षा में फेल होने के बाद त्रिशनित ने कंप्यूटर के अपने शौक को ही कॅरिअर बनाने का फैसला लिया। वे देश के सबसे कम उम्र के सीईओ में एक हैं।
'Hacking talk with trishnit Arora '  ' the king Era '           Hacking with smart phone'  जैसी किताबें लिख चुके हैं। वे साइबर क्राइम के लिए पुलिस को भी अपनी सर्विस देते हैं।
लुधियाना(पंजाब). कम्प्यूटर में गहरी दिलचस्पी। इस वजह से पढ़ाई के दौरान एग्जाम में फेल भी हो गए। घर वालों ने नाराजगी जताई। लेकिन इस लड़के की जिद अलग थी। कुछ नया, पर अपने मन की करना। उन्होंने कर दिखाया। तभी तो महज 22 साल की उम्र में त्रिशनित अरोड़ा नाम का ये लड़का आज करोड़ों का कारोबार करता हैं। ऐसा बिजनेस जिसे आमतौर पर लोग नहीं जानते हैं। क्या करते हैं त्रिशनित, कैसे खड़ा किया करोड़ों का कारोबार...
त्रिशनित एथिकल हैकर हैं। एथिकल हैकिंग में नेटवर्क या सिस्टम इन्फ्रास्ट्रक्चर की सिक्युरिटी इवैल्युएट की जाती है।
certified hackers इसकी निगरानी करते हैं, ताकि कोई नेटवर्क या सिस्टम (कम्प्यूटर) इन्फ्रास्ट्रक्चर की सिक्युरिटी तोड़कर कॉन्फिडेन्शियल चीजें न तो उड़ा सके और न ही वायरस या दूसरे मीडियम्स के जरिए कोई नुकसान पहुंचा सके।
मिडल क्लास फैमिली में पैदा हुए लुधियाना के त्रिशनित अरोड़ा का बपचन से ही पढ़ाई में मन नहीं लगता था।
उनकी कम्प्यूटर में इतनी रुचि थी कि सारा वक्त इसी में चला जाता, बाकी सब्जेक्ट्स की तैयारी के लिए उनके पास समय ही नहीं होता था।
 वे बताते हैं कि आठवीं में पढ़ता था, उस वक्त भी कम्प्यूटर और एथिकल हैकिंग में मेरी दिलचस्पी थी।
पेरेंट्स को उनका काम पसंद नहीं था
 कम्प्यूटिंग पढ़ने में इतना मग्न हो गया कि पढ़ाई ही नहीं की। दो पेपर नहीं दिए और फेल हो गया।
मम्मी-पापा ने खूब डांटा। दोस्त और परिवार के लोग भी मजाक उड़ाते, लेकिन मैंने हिम्मत नहीं छोड़ी।
फेल होने के बाद रेग्युलर पढ़ाई छोड़ दी और आगे 12वीं तक की पढ़ाई उन्होंने कॉरेस्पॉन्डेंस से की।
 इसके साथ-साथ वे कम्प्यूटर और हैकिंग के बारे में लगातार नई जानकारियां भी इकट्‌ठा करते रहे।
उनकी हाउस वाइफ मां और अकाउंटेंट पिता इस काम को पसंद नहीं करते थे।
लेकिन त्रिशनित कम्प्यूटर में अपने शौक को ही करियर बनाना का फैसला कर चुके थे।
शुरुआत में उनकी बातें सुन कर लोग मुस्कुरा देते। मीडिया भी गंभीरता से नहीं लेता।
लेकिन फिर वह अपने काम के जरिए साबित करते कि कैसे विभिन्न कंपनियों का डाटा चुराया जा रहा है और इन दिनों हैकिंग के क्या तरीके इस्तेमाल किए जा रहे हैं।
धीरे-धीरे उनके काम को मान्यता मिलने लगी। कंपनियां उनके काम को सराहने लगीं।
एक साल पहले जब उनकी उम्र 21 वर्ष थी, उन्होंने TAC सिक्युरिटी नाम की साइबर सिक्युरिटी कंपनी बनाई।
त्रिशनित अब रिलायंस, सीबीआई, पंजाब पुलिस, गुजरात पुलिस, अमूल और एवन साइकिल जैसी कंपनियाें को साइबर से जुड़ी सर्विसेज दे रहे हैं।
दुबई-यूके में वर्चुअल ऑफिस, ऐसे मिली ट्रेनिंग
दुबई और यूके में कंपनी का वर्चुअल ऑफिस है। करीब 40% क्लाइंट्स इन्हीं ऑफिसेस से डील करते हैं।
 दुनियाभर में 50 फॉर्च्यून और 500 कंपनियां क्लाइंट हैं।
दो हजार करोड़ के टर्नओवर पर नजर
अब त्रिशनित की नजर कंपनी के बिजनेस को यूएस ले जाने की है।
उन्होंने इसी साल जनवरी में दिए एक अलग इंटरव्यू में कहा था कि वे कंपनी का टर्नओवर बढ़ाकर इसे दो हजार करोड़ रुपए तक ले जाना चाहते हैं।
त्रिशनित का कहना है कि फेल होने के बाद उन्हें ये समझ में आया कि ‘पैशन’ के आगे पढ़ाई मायने नहीं रखती।
फिलहाल वह अपने काम में व्यस्त हैं
भविष्य में वक्त मिलने पर मैनेजमेंट के साथ ग्रैजुएशन करना चाहेंगे।
हालांकि, वह degree or formula education को कामयाबी या जीवनयापन के लिए जरूरी नहीं मानते।
वह कहते हैं कि स्कूली पढ़ाई को उतना ही महत्व दीजिए जितना जरूरी है। ये जीवन का हिस्सा है लेकिन पूरा जीवन नहीं है।
वे कहते हैं कि असफलताओं से कभी निराश नहीं होना चाहिए, क्योंकि असफलताएं ही आगे बढ़ने का रास्ता बताती हैं और आपको अपने मजबूत पक्ष का बेहतर पता चलता है।एस तरह की real life stories पढ़ने के लिए हमारी website-    http://kpmagazine.blogspot.com
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Wednesday, December 27, 2017

कक्षा के बाहर बैठकर पढ़ने वाले ने बनाया दुनिया का सबसे बड़ा '' भारत रत्न '' संविधान। Bhem Rao ambedkar biography in hindi

भारत  के संबिधान के रचियता थे डॉ भीमराव  आम्बेडकर जिनका जन्म  सैन्य छावनी मऊ ( मध्यप्रदेश में)हुआ था. वे रामजी सकपाल  और भीमाबाई की 14 वी व अंतिम संतान थे. उनका परिवार एक मराठी परिवार था | वे महार जाति से संबंध रखते थे, जो अछूत कहे जाते थे और उनके साथ सामाजिक और आर्थिक रूप से गहरा भेदभाव किया जाता था।

अम्बेडकर जी के परिवार में लोग लम्बे समय तक ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी की सेना में कार्यरत थे और उनके पिता, भारतीय सेना की मऊ छावनी में सेवा में सूबेदार पद पर थे . अम्वेडकर जी को कड़ी मेहनत की शिक्षा अपने पिता से ही मिली |  स्कूली पढाई में अच्छे होने पर भी दलित  बच्चो को विद्यालय में अलग बिठाया जाता था और अध्यापको द्वारा भी भेदभाव किया जाता था |
दलित बच्चो को कक्षा में अंदर बैठने की अनुमति नहीं थी और  प्यास लगने पर कोई उची जाती का बिद्यार्थी दलित जाती के बिद्यार्थी  को पानी ऊपर से दाल कर पिलाता था | दलित बिद्यार्थी  को पानी का बर्तन छूने की अनुमति नहीं थी | जिससे कई बार भीमराव  आम्बेडकर को प्यासा ही रह जाना पड़ता |
1894 में उनके पिता सेवा निवर्त हो गए और सतारा में जाकर बस गए वहां उनकी माता अम्बेडकर की मां की मृत्यु हो गई। इन कठिन समय  में  भीमराव  आम्बेडकर केवल तीन भाई , बलराम, आनंदराव और भीमराव और दो बहन मंजुला और तुलासा ही जीवित बच पाये।  अपने एक  शिक्षक महादेव अम्बेडकर जो उनसे विशेष स्नेह रखते थे के कहने  उनके पिता  ने 1898 मे पुनर्विवाह कर लिया और परिवार के साथ मुंबई आ गए । यहाँ अम्बेडकर गवर्न्मेंट हाई स्कूल के पहले अछूत छात्र बने। 1907 में मैट्रिक परीक्षा पास करने के बाद अम्बेडकर ने बंबई विश्वविद्यालय में प्रवेश लिया और वह  भारत में कॉलेज में प्रवेश लेने वाले पहले दलित  बन गये।
अम्बेडकर की शादी   एक नौ वर्षीय लड़की, रमाबाई से तय की गयी थी। 1912 में उन्होंने राजनीति विज्ञान और अर्थशास्त्र में अपनी डिग्री प्राप्त की और बड़ौदा राज्य सरकार की नौकरी को तैयार हो गये। उनकी पत्नी ने एक  बेटे को जन्म दिया जिसका नाम यशवंत रखा गया  । और कुछ ही समय बाद उनके पिता की  मृत्यु २ फरवरी 1913 को हो गयी।
अम्बेडकर ने  कोलंबिया विश्वविद्यालय से   P.H.D. की डिग्री प्राप्त की |
भीमराव अंबेडकर को बाबासाहब के नाम से पुकारते थे |  वे एक भारतीय न्यायशास्त्री, अर्थशास्त्री, राजनेता और सामाजिक सुधारक थे |
1927 में अम्बेडकर ने छुआछूत के खिलाफ एक  आंदोलन शुरू किया। उन्होंने सार्वजनिक आंदोलनों द्वारा प्रेय जल और मंदिरो को सबके लिए खुलवाने के लिए बहुत मेहनत करी ।

13 अक्टूबर 1935 को,  अम्बेडकर जी को लॉ कॉलेज का प्रधानचार्य नियुक्त किया गया । उनके निजी पुस्तकालय मे 50000 से अधिक पुस्तकें थीं।1937 में  उनकी पत्नी रमाबाई की एक लंबी बीमारी के बाद मृत्यु हो गई।
1940 में अम्बेडकर की तबियत खराब हो गयी उन्हें बहुत कम नीद आती थी ,  1948 से अम्बेडकर मधुमेह रोग हो गया ।अक्टूबर 1954 तक वो बहुत बीमार रहे इस दौरान वो बहुत कमज़ोर हो गए  राजनीतिक मुद्दों से परेशान अम्बेडकर का स्वास्थ्य बद से बदतर होता चला गया । और 6 दिसम्बर 1956 को अम्बेडकर की मृत्यु  हो गई। 7 दिसंबर को  बौद्ध शैली मे  उनका अंतिम संस्कार किया गया |

डॉ. अम्बेडकर द्वारा किये गए महान कार्य
31 जनवरी 1920 को एक साप्ताहिक अख़बार “मूकनायक” शुरू किया
1924 में बाबासाहेब ने दलितों को समाज में अन्य वर्गों के बराबर स्थान दिलाने के लिए  बहिष्कृत हितकारिणी सभा की स्थापना की।
1932 को  गांधीजी और डॉ. अम्बेडकर के बीच एक संधि हुई  जो  ‘पूना संधि’ के नाम से जानी  जाती है।
अगस्त 1936 में “स्वतंत्र लेबर पार्टी ‘की स्थापना की।
1937 में डॉ. अम्बेडकर ने कोंकण क्षेत्र में पट्टेदारी को ख़त्म करने के लिए  विधेयक पास करवाया|
भारत के आज़ाद होने पर डॉ. अम्बेडकर को संविधान की रचना का काम सौंपा गया | फरवरी 1948 को अम्बेडकर ने संविधान का प्रारूप प्रस्तुत किया और जिसे २६ जनबरी 1949 को लागू किया गया।
1951 में डॉ. अम्बेडकर  ने कानून मंत्री के पद से त्याग पत्र दे दिया| जय हिंद

Wednesday, December 20, 2017

कैसे एक कूड़ा उठाने वाला बना करोड़पति। success story

विक्की राॅय की सफलता की कहानी,  हम आपके साथ एक ऐसे शख्स की कहानी शेयर करने जा रहे है जो बचपन में घर से भाग जाता है और फिर स्टेशन पर कूड़ा बीनने का काम करता है लेकिन अपनी लगन के कारण एक दिन वो सब पा लेता है जिसके सपने उसने खुद भी न देखे हो. इस आदमी का नाम है विक्की रॉय जिसका नाम शायद आपने पहली बार सुना हो लेकिन इसके जीवन की कहानी सभी के लिए प्रेरणा का काम करेगी.
विक्की रॉय एक गरीब परिवार से आये थे . उसके अलावा, उसकी तीन बहने और भाई थे. अपनी मां से पीटा जाना उनके लिए सामान्य बात थी .विक्की रॉय को घूमने फिरने का बहुत शोक था लेकिन उसे बचपन से ही अन्य बच्चों के साथ खेलने की अनुमति नहीं थी, और जब उसके माता-पिता काम की तलाश में चले गए, तो उसे उसके नाना नानी के साथ छोड़ दिया गया।

 1999 में, जब वह 11 वर्ष के थे,  विक्की रॉय ने भागने का फैसला किया।  उन्होंने अपने चाचा की जेब से 900 रूपये निकाले और घर से भागकर दिल्ली आ गए । स्टेशन पर कुछ बच्चों ने उसे रोते हुए देखा, और उन्हें सलाम बलाक ट्रस्ट (एसबीटी) में ले गये ,

लेकिन ट्रस्ट हमेशा अंदर से बंद रहता था . और  कमरे में बंद रहना रॉय को बिलकुल भी पसंद नहीं था , इसलिए एक सुबह जब दूधवाले के लिए दरवाजे खोले गये, तो वह दूसरी बार भाग गए .वह रेलवे स्टेशन पर उन बच्चों से मिले जो रॉय को ट्रस्ट लेकर गए थे , और उन्हें अपनी कहानी बताई.  इसके बाद, उन्होंने बाकि बच्चो  के साथ कूड़ा उठाने का काम शुरू कर दिया  . । “वे  पानी की बोतलें एकत्र करते, उसमे ठंडा पानी भरते और ट्रेन में जाकर बेच देते । ये सभी पैसे उन्हें अपने मालिक को देने होते थे जो बदले में उन्हें खाना देता लेकिन कुछ समय बाद रॉय  को लगा की इससे वह नहीं कमा सकते  इसलिए ये काम छोड़कर वे अजमेरी गेट के पास एक रेस्तरां में बर्तन धोने का काम करने लगे.  विक्की रॉय के अनुसार वह समय उसकी जिन्दगी सबसे कठिन समय था क्योकि उस समय सर्दी थी. सर्दियों के दौरान पानी ठंडा था, जिससे उनके हाथ पैरो पर कई जख्म हो गए । उन्हें अफ़सोस होता था की वह अपनी घर से क्यों  भाग कर दिल्ली आ गया . लेकिन एक दिन रॉय  की मुलाकात सलाम बलाक ट्रस्ट के एक स्वयंसेवक से हुई  जिसने उन्हें बताया कि उन्हें अभी स्कूल में होना चाहिए . साथ ही स्वयंसेवक ने बताया की उनके ट्रस्ट के कई केंद्र हैं और कुछ में आप स्कूल जा सकते हैं और साथ ही आप हर समय बंद नहीं रहेंगे। ” वह इनमे से एक  केंद्र  में शामिल हो गए, जिसका नाम अपना घर था



विक्की रॉय को स्कूल में 6 th क्लास में दाखिला दिया गया .रॉय ने 10 वीं बोर्ड की परीक्षा में 48 फीसदी प्राप्त किये । स्कूल के अध्यापक को एहसास हुआ कि वह पढाई में उतने अच्छे नहीं है, इसलिए उन्हें National Institute of Open Schooling में शामिल होने के लिए कहा गया , जहां वह कंप्यूटर या टीवी रिपेयर करने का  प्रशिक्षण ले सकता था। फोटोग्राफी के साथ उनका मन यही से आया, जब ट्रस्ट के दो बच्चे फोटोग्राफी में प्रशिक्षण के बाद इंडोनेशिया और श्रीलंका गए । यह देखकर विक्की रॉय के मन में भी लालच आ गया और उसने अपने अध्यापक को कहा की वह भी फोटोग्राफी सीखना चाहते है.


रॉय को पता भी नहीं था कि यह कहकर उसका जीवन हमेशा के लिए बदलने वाला है . उस समय एक ब्रिटिश फिल्म निर्माता डिक्सी बेंजामिन ट्रस्ट में documentary बनाने आये थे. तभी अध्यापक ने रॉय की मुलाकात बेंजामिन से करवाई । इस तरह विक्की रॉय बेंजामिन के सहायक बन गए, और एक फोटोग्राफर के रूप में अपनी यात्रा शुरू की.  रॉय को उस समय english नहीं आती थी इसलिए वह बेंजामिनकी बातों में हाँ में हाँ मिलाता । बेंजामिन ने उसे SLR का उपयोग करना सिखाया ।

रॉय जल्द ही 18 साल के होने वाले थे , और इसका मतलब था कि उन्हें सलाम बलाक ट्रस्ट छोड़ना होगा क्योकि उसमे केवल 18 साल से छोटे बच्चे ही रह सकते थे. बाकी का रहना अब अपने बलबूते पर ही करना होगा। ट्रस्ट केवल एक गैस सिलेंडर, स्टोव, मैट्रेस और बर्तन जैसी मूलभूत चीजे प्रदान करेगा: लेकिन वह ट्रस्ट के आलावा किसी ओर को नहीं जानता था। हालांकि, स्वतंत्र रहना रॉय के लिए  एक आशीर्वाद साबित हुआ क्योकि रॉय ने असिस्टेंट बनने लिए प्रसिद्ध फोटोग्राफर अनय मान से संपर्क किया . उन्होंने सहमति व्यक्त की, लेकिन एक शर्त रखी की रॉय को कम से कम तीन साल तक उसके साथ काम करना होगा

अनय मान एक अच्छे शिक्षक साबित हुए। उसने रॉय को फोटोग्राफी सिखाने के लिए  ड्राइंग का इस्तेमाल किया और प्रकाश और क्षेत्र की गहराई जैसे कॉन्सेप्ट्स से रूबरू करवाया । यह कार्य रॉय को कई जगहों पर ले गया. उनका जीवन कई बार अब शानदार होटल में बीतता था.



रॉय सड़क के बच्चों तस्वीरे खीचना शुरू किया जो 18 साल या उससे कम थे. उन बच्चो लिए कोई काम करना रॉय का लक्ष्य था। ” 2007 में उसने  ‘Street dreams नाम की प्रदर्शनी लगायी जिसमे यह दिखाया गया थे की वह सडको पर कैसे रहता था और कैसे कबाड़ उठाता था . यह ब्रिटिश कमीशन और डीएफआईडी द्वारा प्रायोजित की गई थी  जो बहुत सफल रही। रॉय ने लंदन और दक्षिण अफ्रीका में भी प्रदर्शनी किया जो काफी सफल रहा । यह वह समय था  जब रॉय को लगने लगा की वह भी एक बड़ा फोटोग्राफर है और उसमे घमंड आने लगा  । यह देखकर  अनय मान ने उसे बुलाया और कहा कि प्रदर्शनी से पहले वह सरल था, लेकिन अब वह घमंडी होता जा रहा है जो भविष्य के लिए बिलकुल भी अच्छा नहीं है । अपने गुरु की बात को मानते हुए उसने  वादा किया की वह अब ऐसा नहीं करेगा ।
‘Street dreams ’ की सफलता के बाद रॉय नई परियोजनाओं को लेकर आश्वस्त था। 2008 में, मेबा फाउंडेशन द्वारा आयोजित एक वैश्विक प्रतियोगिता में भाग लिया जिसमे 5000 लोग ने हिस्सा लिया था . इसमें जितने वाले को अमेरिका जाकर छह महीने के लिए  विश्व व्यापार केंद्र wtc की फोटोग्राफ़ी  करने का मोका दिया जाना था. रॉय जितने वाले तीन फोटोग्राफरों में से एक था। ।” उनका काम डब्ल्यूटीसी 7 में प्रदर्शित हुआ, और उन्हें ड्यूक ऑफ एडिनबर्ग अवार्ड से नवाज़ा गया.  रॉय को बकिंघम पैलेस में प्रिंस एडवर्ड के साथ दोपहर के भोजन के लिए आमंत्रित किया गया। यह पहली बार था जब उसने महल के बारे में सुना था। रॉय का काम कई जगहों पर जाना शुरू हुआ: जैसे व्हाइटचापल गैलरी और फ़ोटोमुस्म स्विटज़रलैंड.



2011 में विक्की रॉय ने अपने दोस्त चन्दन गोम्स के साथ एक लाइब्रेरी खोली. इसमें फोटोग्राफी की किताबें रखी गई. फोटोग्राफी  की किताबे काफी महंगी आती थी जिसे एक साधारण बच्चा नहीं खरीद सकता था.  उन्होंने सभी बड़े फोटोग्राफर को एक मेल किया और अपना उद्देश्य बताया और कहा की वे उनसे उनकी एक एक किताब लाइब्रेरी की लिए फ्री में लेना चाहते है ताकि गरीब बच्चो को फायदा हो सके. इस तरह उन्होंने करीब काफी सारी किताबे इकट्ठी की


यह लाइब्रेरी गरीब  बच्चों के लिए फोटोग्राफी  का आयोजन करता है. यह लाइब्रेरी  वर्तमान में दिल्ली के मेहरौली में ओजस आर्ट गैलरी में स्थित है।


दोस्तों यह एक कूड़ा उठाने वाले की कहानी है जो अपनी मेहनत के दम पर आज भारत के बड़े बड़े फोटोग्राफर की लिस्ट में शामिल है. किसी ने सही ही कहा है की परिक्षम वह चाबी है जो किस्मत के दरवाज़े खोलती है. कई लोग अपनी जिन्दगी हालातो का रोना रोते हुए बिता देते है तो कई हालातो को झुकाने के लिए मजबूर कर देते है. अब आपको तय करना है की आप क्या करना चाहते है?
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Tuesday, December 19, 2017

जीवन में बड़ा बनना चाहते हो तो 1 चीज को अाज ही त्याग दें, inspirational story

दोस्तो इस दुनिया में हर आदमी सफल होना चाहता है ऐसा कोई भी आदमी नहीं है जो अमीर बनना नहीं चाहता है जिसके कोई सपने ना हो सफलता हर किसी को प्राप्त नहीं हो पाती है आज आपको पता चल जाएगा ज्यादातर लोग अपने जीवन में क्यों सफल नहीं हो पाते आज मैं आपको छोटी सी कहानी बताने जा रहा हूं।
एक दाशमिक अपने शिष्य के साथ कहीं जा रहे थे चलते चलते  दोनों एक जगह पर रुक गए। दोनों को बहुत प्यास लगी थी। तो वे खेतों के बीचों बीच बने टूटे फूटे घर के पास पहुंचे और दरवाजा खटखटाया क्षेत्र काफी अच्छा और उपजाऊ लग रहा था । लेकिन खेत की हालत देखकर ऐसा लगता था कि उनका मालिक   खेत पर जरा भी ध्यान नहीं देता है।

घर के अंदर से एक आदमी निकला उसमें उसकी पत्नी और 3 बच्चे भी थे सभी फटे पुराने कपड़े पहने थे। दाशमिक बोला क्या हमें पानी मिल सकता है बड़ी प्यास लगी है आदमी ने पानी दिया फिर दाशमिक ने बोला मैं देख रहा हूं कि आपका खेत बहुत बड़ा है लेकिन इसमें कोई फसल नहीं  है। आखिर आप लोगों का गुजारा कैसे चलता है वह आदमी बोला हमारे पास एक भैंस है जो काफी सारा दूध देती है। दूध बेचकर कुछ पैसे मिल जाते हैं और बच्चे दूध को पीकर, हमारा गुजारा चल जाता है।रात बहुत हो गई थी और दोनों रात को वहीं रुक गए आधी रात को दाशमिक ने शिष्य को उठाया और बोला चलो हमें यहां से चलना है। और चलने से पहले हमें उस आदमी की भैंस को चट्टान से गिरा कर मार डालना है। शिष्य को गुरु की बात पर यकीन नहीं हो रहा था। बल्कि आश्चर्य हुआ लेकिन वह उनकी बात को टाल भी नहीं सकता था इसलिए दोनों भैंस को मार कर रातों-रात गायब हो गए। यह घटना शिष्य के मन में बैठ गई। करीब 10 साल बाद वह सफल आदमी बन गया तब उसने सोचा क्यों ना अपनी गलती को सुधारने के लिए उस आदमी से मिला जाए उसकी आर्थिक मदद की जाए अपनी कार से खेत की तरफ पहुंचा तो उसने देखा वह खेत फलों के बगीचे में बदल चुका था।शिष्य को लगा की शायद भैंस मरने के बाद वह सब कुछ बेच कर चला गया होगा इसलिए वह वापस लौटने लगा तभी उसने उस आदमी को देखा फिर से बोला शायद आप मुझे पहचान नहीं पाए सालों पहले मैं आपसे मिला था हां हां कैसे भूल सकता हूं उस दिन को आप लोग तो बिना बताए ही चले गए। और उस दिन ना जाने कैसे हमारी भैंस चट्टान से गिरकर मर गई उसके  बाद कुछ दिन तो समझ नहीं आया कि अब क्या करें पर जीने के लिए कुछ तो करना ही था तो लकड़ियां काट कर बेचने लगा उससे कुछ पैसे हुए तो खेत में बुवाई कर दी। फसल अच्छी हुई तो फसल बेच कर जो पैसे मिले उससे फलों की बगीची लगवा दिए।
यह काम अच्छा चल पड़ा और इस समय में आसपास के हजारों गांव में सबसे बड़ा फलों का व्यापारी हूं सचमुच यह सब ना होता अगर उस रात भैंस की मौत ना हुई होती शिष्य बोला लेकिन यह काम आप पहले भी तो कर सकते थे आदमी बोला लेकिन तब जिंदगी बिना मेहनत किए चल रही थी। कभी लगा  नहीं कि मेरे अंदर इतना सब करने की क्षमता है तो कोशिश ही नहीं की लेकिन जब भैंस मर गई तो दो हाथ पांव मारने पड़े। दोस्तो यही आपकी भी जिंदगी में तो कोई ऐसी भैंस नहीं है जो आपको अपनी जिंदगी बेहतर बनाने में रोक रही है उस भैंस ने तो कहीं आप को बांधकर तो नहीं रखा जरा सोचिए। अगर आपको लगे कि ऐसा है तो हिम्मत कीजिए उस रस्सी को काट दीजिए और आजाद हो जाइए। और आपके पास खोने के लिए बहुत थोड़ा है पर पाने के लिए सारा जहान है।

Sunday, December 17, 2017

6 साल का ये बच्चा एक साल में कमाता हैं 11 मिलियन डॉलर।

 मैं आपको एक ऐसे बच्चे के बारे में बताने जा रहा हूँ जिसके बारे में आप सोच भी नहीं सकते हैं कि एक बच्चा भी करोड़पति हो सकता है। जी हां ऐसा हो सकता है। 6 साल का रायन सिर्फ अपने यूट्यूब वीडियोज़ के जरिए साल में 71 करोड़ रुपए कमा रहा है।
रायन टॉयज़ रिव्यू' के नाम का यह चैनल यूट्यूब पर काफी लोकप्रिय है।
रायन और उसके परिवार द्वारा चलाए जाने वाले इस चैनल पर रायन खिलौनों का रिव्यू करता है। फोर्ब्स ने हाल ही में यूट्यूब के जरिए कमाई करने वाले टॉप 10 सिलेब्रिटीज़ की लिस्ट जारी की थी, जिसमें रायन 11 मिलियन डॉलर करीब71 करोड़ रुपए की कमाई के साथ 9वें नंबर पर है। 
जुलाई 2015 में यूट्यूब पर कदम रखने वाले रायन ने अब तक कई वीडियोज़ पोस्ट किए हैं। मगर उसका सबसे लोकप्रिय वीडियो रहा 'जायंट एग सरप्राइज़' का रिव्यू। इस वीडियो पर अभी तक 80 करोड़ से ज्यादा व्यूज़ हैं।

- रायन के यूट्यूब चैनल पर इस वक्त 10 मिलियन 1 करोड़ सब्सक्राइबर्स हैं। अनुमान है कि अकेले विज्ञापन के जरिए ही रायन महीने में करीब 6 करोड़ रुपए कमा लेता है।