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Sunday, January 14, 2018

जूते पॉलिश करने वाले ने खडी की करोडों की कम्पनी।

आज हम आपके साथ एक एेसे शख्स के बारे में बताने जा रहे हैं जिसने engineering की पढ़ाई करने के बाद जूते पॉलिश का काम शुरू किया था लेकिन अपनी मेहनत से वह एक दिन सफल आदमी बन जाता है अगर आप जूता पॉलिश करने को छोटा या निम्न स्तर का काम समझते हैं तो अपनी इस सोच को बदल दें. क्योंकि कोई भी काम छोटा या बड़ा नहीं होता. आइडिया बेहतरीन हो तो किसी भी काम के जरिये कामयाबी हासिल करना असंभ नहीं है.

एक ऐसी ही मिसाल पेश की है संदीप गजकस ने. संदीप को सफाई का फितूर रहता था. घर हो या उनके अपने जूते, कुछ भी गंदा नहीं रहना चाहिए. हालांकि शादी के बाद संदीप के इस‍ फितूर में जरा सी कमी जरूर आई है, पर सफाई रखने का उनका जुनून अब भी कम नहीं हुआ है.

उनके सफाई पसंद आदत की वजह से ही आज वो करोड़प‍ति हैं. संदीप ने एक ऐसा बिजनेस शुरू किया, जिसे लोग निम्न स्तर का मानते थे. संदीप ने जूते की लॉन्ड्र‍िंग शुरू कर यह साबित कर दिया कि कोई काम छोटा या बड़ा नहीं होता.

इंजीनियर हैं संदीप

संदीप गजकस नैशनल इंस्‍टीट्यूट ऑफ फायरिंग इंजीनियरिंग से इंजीनियरिंग कर चुके थे. वह जॉब के लिए गल्‍फ जाने की तैयारी कर रहे थे, लेकिन तभी 2001 में अमेरिका पर 9/11 का अटैक हुआ और उन्‍होंने विदेश जाने का प्‍लान ड्रॉप कर दिया.

विदेश में नौकरी का प्‍लान ड्रॉप करने के बाद संदीप ने शू पॉलिश का बिजनैस शुरू करने की ठानी. करीब 12,000 रुपये खर्च कर उन्‍होंने बिजनैस शुरू करने की तैयारी शुरू किया. मां-बाप और दोस्‍तों को अपना यूनिक आइडिया समझाने के बाद कुछ महीनों तक संदीप ने खुद जूता पॉलिश किया. अपने बाथरूम को वर्कशॉप बनाकर उन्‍होंने शू पॉलिशिंग को लेकर रिसर्च करना शुरू किया. इसके लिए उन्‍होंने अपने दोस्‍तों और रिश्‍तेदारों के जूते पॉलिश करने का काम किया.

संदीप ने एक इंटरव्‍यू में बताया था कि वह जूता पॉलिश के बिजनैस को सिर्फ पॉलिश से निकालकर रिपेयरिंग तक ले जाना चाहते थे. ऐसे में उन्‍होंने काफी लंबे समय तक रिसर्च किया. इस दौरान उन्‍होंने लाखों रुपये खर्च किए और फेल होते रहे. संदीप ने बताया कि मैं पुराने जूतों को एकदम नया बनाने और उन्‍हें रिपेयर करने के इनो‍वेटिव तरीके ढूंढ़ रहा था. मैंने रिसर्च पर सबसे ज्‍यादा समय बिताया और उस रिसर्च के बदौलत ही मैंने फाइन‍ली 2003 में अपना और देश की पहली 'द शू लॉन्‍ड्री' कंपनी शुरू की. मैंने सफल होने के लिए पहले फेल होना सीखा और उन तरीकों को ढूंढ़ा, जो मुझे नहीं करने चाहिए. मुंबई के अंधेरी इलाके में शुरू हुई गजकस की ये कंपनी आज देश के कई शहरों में पहुंच चुकी है.

संदीप आज इसकी फ्रेंचाइजी देते हैं और कंपनी का टर्नओवर करोड़ों में पहुंच चुका है.अगर आप इस तरह की real life story पढना चाहते हैं तो हमारी
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