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Wednesday, December 27, 2017

कक्षा के बाहर बैठकर पढ़ने वाले ने बनाया दुनिया का सबसे बड़ा '' भारत रत्न '' संविधान। Bhem Rao ambedkar biography in hindi

भारत  के संबिधान के रचियता थे डॉ भीमराव  आम्बेडकर जिनका जन्म  सैन्य छावनी मऊ ( मध्यप्रदेश में)हुआ था. वे रामजी सकपाल  और भीमाबाई की 14 वी व अंतिम संतान थे. उनका परिवार एक मराठी परिवार था | वे महार जाति से संबंध रखते थे, जो अछूत कहे जाते थे और उनके साथ सामाजिक और आर्थिक रूप से गहरा भेदभाव किया जाता था।

अम्बेडकर जी के परिवार में लोग लम्बे समय तक ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी की सेना में कार्यरत थे और उनके पिता, भारतीय सेना की मऊ छावनी में सेवा में सूबेदार पद पर थे . अम्वेडकर जी को कड़ी मेहनत की शिक्षा अपने पिता से ही मिली |  स्कूली पढाई में अच्छे होने पर भी दलित  बच्चो को विद्यालय में अलग बिठाया जाता था और अध्यापको द्वारा भी भेदभाव किया जाता था |
दलित बच्चो को कक्षा में अंदर बैठने की अनुमति नहीं थी और  प्यास लगने पर कोई उची जाती का बिद्यार्थी दलित जाती के बिद्यार्थी  को पानी ऊपर से दाल कर पिलाता था | दलित बिद्यार्थी  को पानी का बर्तन छूने की अनुमति नहीं थी | जिससे कई बार भीमराव  आम्बेडकर को प्यासा ही रह जाना पड़ता |
1894 में उनके पिता सेवा निवर्त हो गए और सतारा में जाकर बस गए वहां उनकी माता अम्बेडकर की मां की मृत्यु हो गई। इन कठिन समय  में  भीमराव  आम्बेडकर केवल तीन भाई , बलराम, आनंदराव और भीमराव और दो बहन मंजुला और तुलासा ही जीवित बच पाये।  अपने एक  शिक्षक महादेव अम्बेडकर जो उनसे विशेष स्नेह रखते थे के कहने  उनके पिता  ने 1898 मे पुनर्विवाह कर लिया और परिवार के साथ मुंबई आ गए । यहाँ अम्बेडकर गवर्न्मेंट हाई स्कूल के पहले अछूत छात्र बने। 1907 में मैट्रिक परीक्षा पास करने के बाद अम्बेडकर ने बंबई विश्वविद्यालय में प्रवेश लिया और वह  भारत में कॉलेज में प्रवेश लेने वाले पहले दलित  बन गये।
अम्बेडकर की शादी   एक नौ वर्षीय लड़की, रमाबाई से तय की गयी थी। 1912 में उन्होंने राजनीति विज्ञान और अर्थशास्त्र में अपनी डिग्री प्राप्त की और बड़ौदा राज्य सरकार की नौकरी को तैयार हो गये। उनकी पत्नी ने एक  बेटे को जन्म दिया जिसका नाम यशवंत रखा गया  । और कुछ ही समय बाद उनके पिता की  मृत्यु २ फरवरी 1913 को हो गयी।
अम्बेडकर ने  कोलंबिया विश्वविद्यालय से   P.H.D. की डिग्री प्राप्त की |
भीमराव अंबेडकर को बाबासाहब के नाम से पुकारते थे |  वे एक भारतीय न्यायशास्त्री, अर्थशास्त्री, राजनेता और सामाजिक सुधारक थे |
1927 में अम्बेडकर ने छुआछूत के खिलाफ एक  आंदोलन शुरू किया। उन्होंने सार्वजनिक आंदोलनों द्वारा प्रेय जल और मंदिरो को सबके लिए खुलवाने के लिए बहुत मेहनत करी ।

13 अक्टूबर 1935 को,  अम्बेडकर जी को लॉ कॉलेज का प्रधानचार्य नियुक्त किया गया । उनके निजी पुस्तकालय मे 50000 से अधिक पुस्तकें थीं।1937 में  उनकी पत्नी रमाबाई की एक लंबी बीमारी के बाद मृत्यु हो गई।
1940 में अम्बेडकर की तबियत खराब हो गयी उन्हें बहुत कम नीद आती थी ,  1948 से अम्बेडकर मधुमेह रोग हो गया ।अक्टूबर 1954 तक वो बहुत बीमार रहे इस दौरान वो बहुत कमज़ोर हो गए  राजनीतिक मुद्दों से परेशान अम्बेडकर का स्वास्थ्य बद से बदतर होता चला गया । और 6 दिसम्बर 1956 को अम्बेडकर की मृत्यु  हो गई। 7 दिसंबर को  बौद्ध शैली मे  उनका अंतिम संस्कार किया गया |

डॉ. अम्बेडकर द्वारा किये गए महान कार्य
31 जनवरी 1920 को एक साप्ताहिक अख़बार “मूकनायक” शुरू किया
1924 में बाबासाहेब ने दलितों को समाज में अन्य वर्गों के बराबर स्थान दिलाने के लिए  बहिष्कृत हितकारिणी सभा की स्थापना की।
1932 को  गांधीजी और डॉ. अम्बेडकर के बीच एक संधि हुई  जो  ‘पूना संधि’ के नाम से जानी  जाती है।
अगस्त 1936 में “स्वतंत्र लेबर पार्टी ‘की स्थापना की।
1937 में डॉ. अम्बेडकर ने कोंकण क्षेत्र में पट्टेदारी को ख़त्म करने के लिए  विधेयक पास करवाया|
भारत के आज़ाद होने पर डॉ. अम्बेडकर को संविधान की रचना का काम सौंपा गया | फरवरी 1948 को अम्बेडकर ने संविधान का प्रारूप प्रस्तुत किया और जिसे २६ जनबरी 1949 को लागू किया गया।
1951 में डॉ. अम्बेडकर  ने कानून मंत्री के पद से त्याग पत्र दे दिया| जय हिंद

Wednesday, December 20, 2017

कैसे एक कूड़ा उठाने वाला बना करोड़पति। success story

विक्की राॅय की सफलता की कहानी,  हम आपके साथ एक ऐसे शख्स की कहानी शेयर करने जा रहे है जो बचपन में घर से भाग जाता है और फिर स्टेशन पर कूड़ा बीनने का काम करता है लेकिन अपनी लगन के कारण एक दिन वो सब पा लेता है जिसके सपने उसने खुद भी न देखे हो. इस आदमी का नाम है विक्की रॉय जिसका नाम शायद आपने पहली बार सुना हो लेकिन इसके जीवन की कहानी सभी के लिए प्रेरणा का काम करेगी.
विक्की रॉय एक गरीब परिवार से आये थे . उसके अलावा, उसकी तीन बहने और भाई थे. अपनी मां से पीटा जाना उनके लिए सामान्य बात थी .विक्की रॉय को घूमने फिरने का बहुत शोक था लेकिन उसे बचपन से ही अन्य बच्चों के साथ खेलने की अनुमति नहीं थी, और जब उसके माता-पिता काम की तलाश में चले गए, तो उसे उसके नाना नानी के साथ छोड़ दिया गया।

 1999 में, जब वह 11 वर्ष के थे,  विक्की रॉय ने भागने का फैसला किया।  उन्होंने अपने चाचा की जेब से 900 रूपये निकाले और घर से भागकर दिल्ली आ गए । स्टेशन पर कुछ बच्चों ने उसे रोते हुए देखा, और उन्हें सलाम बलाक ट्रस्ट (एसबीटी) में ले गये ,

लेकिन ट्रस्ट हमेशा अंदर से बंद रहता था . और  कमरे में बंद रहना रॉय को बिलकुल भी पसंद नहीं था , इसलिए एक सुबह जब दूधवाले के लिए दरवाजे खोले गये, तो वह दूसरी बार भाग गए .वह रेलवे स्टेशन पर उन बच्चों से मिले जो रॉय को ट्रस्ट लेकर गए थे , और उन्हें अपनी कहानी बताई.  इसके बाद, उन्होंने बाकि बच्चो  के साथ कूड़ा उठाने का काम शुरू कर दिया  . । “वे  पानी की बोतलें एकत्र करते, उसमे ठंडा पानी भरते और ट्रेन में जाकर बेच देते । ये सभी पैसे उन्हें अपने मालिक को देने होते थे जो बदले में उन्हें खाना देता लेकिन कुछ समय बाद रॉय  को लगा की इससे वह नहीं कमा सकते  इसलिए ये काम छोड़कर वे अजमेरी गेट के पास एक रेस्तरां में बर्तन धोने का काम करने लगे.  विक्की रॉय के अनुसार वह समय उसकी जिन्दगी सबसे कठिन समय था क्योकि उस समय सर्दी थी. सर्दियों के दौरान पानी ठंडा था, जिससे उनके हाथ पैरो पर कई जख्म हो गए । उन्हें अफ़सोस होता था की वह अपनी घर से क्यों  भाग कर दिल्ली आ गया . लेकिन एक दिन रॉय  की मुलाकात सलाम बलाक ट्रस्ट के एक स्वयंसेवक से हुई  जिसने उन्हें बताया कि उन्हें अभी स्कूल में होना चाहिए . साथ ही स्वयंसेवक ने बताया की उनके ट्रस्ट के कई केंद्र हैं और कुछ में आप स्कूल जा सकते हैं और साथ ही आप हर समय बंद नहीं रहेंगे। ” वह इनमे से एक  केंद्र  में शामिल हो गए, जिसका नाम अपना घर था



विक्की रॉय को स्कूल में 6 th क्लास में दाखिला दिया गया .रॉय ने 10 वीं बोर्ड की परीक्षा में 48 फीसदी प्राप्त किये । स्कूल के अध्यापक को एहसास हुआ कि वह पढाई में उतने अच्छे नहीं है, इसलिए उन्हें National Institute of Open Schooling में शामिल होने के लिए कहा गया , जहां वह कंप्यूटर या टीवी रिपेयर करने का  प्रशिक्षण ले सकता था। फोटोग्राफी के साथ उनका मन यही से आया, जब ट्रस्ट के दो बच्चे फोटोग्राफी में प्रशिक्षण के बाद इंडोनेशिया और श्रीलंका गए । यह देखकर विक्की रॉय के मन में भी लालच आ गया और उसने अपने अध्यापक को कहा की वह भी फोटोग्राफी सीखना चाहते है.


रॉय को पता भी नहीं था कि यह कहकर उसका जीवन हमेशा के लिए बदलने वाला है . उस समय एक ब्रिटिश फिल्म निर्माता डिक्सी बेंजामिन ट्रस्ट में documentary बनाने आये थे. तभी अध्यापक ने रॉय की मुलाकात बेंजामिन से करवाई । इस तरह विक्की रॉय बेंजामिन के सहायक बन गए, और एक फोटोग्राफर के रूप में अपनी यात्रा शुरू की.  रॉय को उस समय english नहीं आती थी इसलिए वह बेंजामिनकी बातों में हाँ में हाँ मिलाता । बेंजामिन ने उसे SLR का उपयोग करना सिखाया ।

रॉय जल्द ही 18 साल के होने वाले थे , और इसका मतलब था कि उन्हें सलाम बलाक ट्रस्ट छोड़ना होगा क्योकि उसमे केवल 18 साल से छोटे बच्चे ही रह सकते थे. बाकी का रहना अब अपने बलबूते पर ही करना होगा। ट्रस्ट केवल एक गैस सिलेंडर, स्टोव, मैट्रेस और बर्तन जैसी मूलभूत चीजे प्रदान करेगा: लेकिन वह ट्रस्ट के आलावा किसी ओर को नहीं जानता था। हालांकि, स्वतंत्र रहना रॉय के लिए  एक आशीर्वाद साबित हुआ क्योकि रॉय ने असिस्टेंट बनने लिए प्रसिद्ध फोटोग्राफर अनय मान से संपर्क किया . उन्होंने सहमति व्यक्त की, लेकिन एक शर्त रखी की रॉय को कम से कम तीन साल तक उसके साथ काम करना होगा

अनय मान एक अच्छे शिक्षक साबित हुए। उसने रॉय को फोटोग्राफी सिखाने के लिए  ड्राइंग का इस्तेमाल किया और प्रकाश और क्षेत्र की गहराई जैसे कॉन्सेप्ट्स से रूबरू करवाया । यह कार्य रॉय को कई जगहों पर ले गया. उनका जीवन कई बार अब शानदार होटल में बीतता था.



रॉय सड़क के बच्चों तस्वीरे खीचना शुरू किया जो 18 साल या उससे कम थे. उन बच्चो लिए कोई काम करना रॉय का लक्ष्य था। ” 2007 में उसने  ‘Street dreams नाम की प्रदर्शनी लगायी जिसमे यह दिखाया गया थे की वह सडको पर कैसे रहता था और कैसे कबाड़ उठाता था . यह ब्रिटिश कमीशन और डीएफआईडी द्वारा प्रायोजित की गई थी  जो बहुत सफल रही। रॉय ने लंदन और दक्षिण अफ्रीका में भी प्रदर्शनी किया जो काफी सफल रहा । यह वह समय था  जब रॉय को लगने लगा की वह भी एक बड़ा फोटोग्राफर है और उसमे घमंड आने लगा  । यह देखकर  अनय मान ने उसे बुलाया और कहा कि प्रदर्शनी से पहले वह सरल था, लेकिन अब वह घमंडी होता जा रहा है जो भविष्य के लिए बिलकुल भी अच्छा नहीं है । अपने गुरु की बात को मानते हुए उसने  वादा किया की वह अब ऐसा नहीं करेगा ।
‘Street dreams ’ की सफलता के बाद रॉय नई परियोजनाओं को लेकर आश्वस्त था। 2008 में, मेबा फाउंडेशन द्वारा आयोजित एक वैश्विक प्रतियोगिता में भाग लिया जिसमे 5000 लोग ने हिस्सा लिया था . इसमें जितने वाले को अमेरिका जाकर छह महीने के लिए  विश्व व्यापार केंद्र wtc की फोटोग्राफ़ी  करने का मोका दिया जाना था. रॉय जितने वाले तीन फोटोग्राफरों में से एक था। ।” उनका काम डब्ल्यूटीसी 7 में प्रदर्शित हुआ, और उन्हें ड्यूक ऑफ एडिनबर्ग अवार्ड से नवाज़ा गया.  रॉय को बकिंघम पैलेस में प्रिंस एडवर्ड के साथ दोपहर के भोजन के लिए आमंत्रित किया गया। यह पहली बार था जब उसने महल के बारे में सुना था। रॉय का काम कई जगहों पर जाना शुरू हुआ: जैसे व्हाइटचापल गैलरी और फ़ोटोमुस्म स्विटज़रलैंड.



2011 में विक्की रॉय ने अपने दोस्त चन्दन गोम्स के साथ एक लाइब्रेरी खोली. इसमें फोटोग्राफी की किताबें रखी गई. फोटोग्राफी  की किताबे काफी महंगी आती थी जिसे एक साधारण बच्चा नहीं खरीद सकता था.  उन्होंने सभी बड़े फोटोग्राफर को एक मेल किया और अपना उद्देश्य बताया और कहा की वे उनसे उनकी एक एक किताब लाइब्रेरी की लिए फ्री में लेना चाहते है ताकि गरीब बच्चो को फायदा हो सके. इस तरह उन्होंने करीब काफी सारी किताबे इकट्ठी की


यह लाइब्रेरी गरीब  बच्चों के लिए फोटोग्राफी  का आयोजन करता है. यह लाइब्रेरी  वर्तमान में दिल्ली के मेहरौली में ओजस आर्ट गैलरी में स्थित है।


दोस्तों यह एक कूड़ा उठाने वाले की कहानी है जो अपनी मेहनत के दम पर आज भारत के बड़े बड़े फोटोग्राफर की लिस्ट में शामिल है. किसी ने सही ही कहा है की परिक्षम वह चाबी है जो किस्मत के दरवाज़े खोलती है. कई लोग अपनी जिन्दगी हालातो का रोना रोते हुए बिता देते है तो कई हालातो को झुकाने के लिए मजबूर कर देते है. अब आपको तय करना है की आप क्या करना चाहते है?
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Tuesday, December 19, 2017

जीवन में बड़ा बनना चाहते हो तो 1 चीज को अाज ही त्याग दें, inspirational story

दोस्तो इस दुनिया में हर आदमी सफल होना चाहता है ऐसा कोई भी आदमी नहीं है जो अमीर बनना नहीं चाहता है जिसके कोई सपने ना हो सफलता हर किसी को प्राप्त नहीं हो पाती है आज आपको पता चल जाएगा ज्यादातर लोग अपने जीवन में क्यों सफल नहीं हो पाते आज मैं आपको छोटी सी कहानी बताने जा रहा हूं।
एक दाशमिक अपने शिष्य के साथ कहीं जा रहे थे चलते चलते  दोनों एक जगह पर रुक गए। दोनों को बहुत प्यास लगी थी। तो वे खेतों के बीचों बीच बने टूटे फूटे घर के पास पहुंचे और दरवाजा खटखटाया क्षेत्र काफी अच्छा और उपजाऊ लग रहा था । लेकिन खेत की हालत देखकर ऐसा लगता था कि उनका मालिक   खेत पर जरा भी ध्यान नहीं देता है।

घर के अंदर से एक आदमी निकला उसमें उसकी पत्नी और 3 बच्चे भी थे सभी फटे पुराने कपड़े पहने थे। दाशमिक बोला क्या हमें पानी मिल सकता है बड़ी प्यास लगी है आदमी ने पानी दिया फिर दाशमिक ने बोला मैं देख रहा हूं कि आपका खेत बहुत बड़ा है लेकिन इसमें कोई फसल नहीं  है। आखिर आप लोगों का गुजारा कैसे चलता है वह आदमी बोला हमारे पास एक भैंस है जो काफी सारा दूध देती है। दूध बेचकर कुछ पैसे मिल जाते हैं और बच्चे दूध को पीकर, हमारा गुजारा चल जाता है।रात बहुत हो गई थी और दोनों रात को वहीं रुक गए आधी रात को दाशमिक ने शिष्य को उठाया और बोला चलो हमें यहां से चलना है। और चलने से पहले हमें उस आदमी की भैंस को चट्टान से गिरा कर मार डालना है। शिष्य को गुरु की बात पर यकीन नहीं हो रहा था। बल्कि आश्चर्य हुआ लेकिन वह उनकी बात को टाल भी नहीं सकता था इसलिए दोनों भैंस को मार कर रातों-रात गायब हो गए। यह घटना शिष्य के मन में बैठ गई। करीब 10 साल बाद वह सफल आदमी बन गया तब उसने सोचा क्यों ना अपनी गलती को सुधारने के लिए उस आदमी से मिला जाए उसकी आर्थिक मदद की जाए अपनी कार से खेत की तरफ पहुंचा तो उसने देखा वह खेत फलों के बगीचे में बदल चुका था।शिष्य को लगा की शायद भैंस मरने के बाद वह सब कुछ बेच कर चला गया होगा इसलिए वह वापस लौटने लगा तभी उसने उस आदमी को देखा फिर से बोला शायद आप मुझे पहचान नहीं पाए सालों पहले मैं आपसे मिला था हां हां कैसे भूल सकता हूं उस दिन को आप लोग तो बिना बताए ही चले गए। और उस दिन ना जाने कैसे हमारी भैंस चट्टान से गिरकर मर गई उसके  बाद कुछ दिन तो समझ नहीं आया कि अब क्या करें पर जीने के लिए कुछ तो करना ही था तो लकड़ियां काट कर बेचने लगा उससे कुछ पैसे हुए तो खेत में बुवाई कर दी। फसल अच्छी हुई तो फसल बेच कर जो पैसे मिले उससे फलों की बगीची लगवा दिए।
यह काम अच्छा चल पड़ा और इस समय में आसपास के हजारों गांव में सबसे बड़ा फलों का व्यापारी हूं सचमुच यह सब ना होता अगर उस रात भैंस की मौत ना हुई होती शिष्य बोला लेकिन यह काम आप पहले भी तो कर सकते थे आदमी बोला लेकिन तब जिंदगी बिना मेहनत किए चल रही थी। कभी लगा  नहीं कि मेरे अंदर इतना सब करने की क्षमता है तो कोशिश ही नहीं की लेकिन जब भैंस मर गई तो दो हाथ पांव मारने पड़े। दोस्तो यही आपकी भी जिंदगी में तो कोई ऐसी भैंस नहीं है जो आपको अपनी जिंदगी बेहतर बनाने में रोक रही है उस भैंस ने तो कहीं आप को बांधकर तो नहीं रखा जरा सोचिए। अगर आपको लगे कि ऐसा है तो हिम्मत कीजिए उस रस्सी को काट दीजिए और आजाद हो जाइए। और आपके पास खोने के लिए बहुत थोड़ा है पर पाने के लिए सारा जहान है।

Sunday, December 17, 2017

6 साल का ये बच्चा एक साल में कमाता हैं 11 मिलियन डॉलर।

 मैं आपको एक ऐसे बच्चे के बारे में बताने जा रहा हूँ जिसके बारे में आप सोच भी नहीं सकते हैं कि एक बच्चा भी करोड़पति हो सकता है। जी हां ऐसा हो सकता है। 6 साल का रायन सिर्फ अपने यूट्यूब वीडियोज़ के जरिए साल में 71 करोड़ रुपए कमा रहा है।
रायन टॉयज़ रिव्यू' के नाम का यह चैनल यूट्यूब पर काफी लोकप्रिय है।
रायन और उसके परिवार द्वारा चलाए जाने वाले इस चैनल पर रायन खिलौनों का रिव्यू करता है। फोर्ब्स ने हाल ही में यूट्यूब के जरिए कमाई करने वाले टॉप 10 सिलेब्रिटीज़ की लिस्ट जारी की थी, जिसमें रायन 11 मिलियन डॉलर करीब71 करोड़ रुपए की कमाई के साथ 9वें नंबर पर है। 
जुलाई 2015 में यूट्यूब पर कदम रखने वाले रायन ने अब तक कई वीडियोज़ पोस्ट किए हैं। मगर उसका सबसे लोकप्रिय वीडियो रहा 'जायंट एग सरप्राइज़' का रिव्यू। इस वीडियो पर अभी तक 80 करोड़ से ज्यादा व्यूज़ हैं।

- रायन के यूट्यूब चैनल पर इस वक्त 10 मिलियन 1 करोड़ सब्सक्राइबर्स हैं। अनुमान है कि अकेले विज्ञापन के जरिए ही रायन महीने में करीब 6 करोड़ रुपए कमा लेता है।